CBSE For Class 6 Hindi Chapter 2 गोल
1. पाठ का सार
यह पाठ हॉकी खेल के जादूगर मेजर ध्यानचंद के संस्मरण का एक अंश है। ‘गोल’ शब्द पढ़ते ही हमारे समक्ष गोल वस्तुओं के नाम और चित्र जैसे- गेंद, रोटी, सूरज, चाँद आदि उभर आते हैं लेकिन इस पाठ में ध्यानचंद ने हॉकी के ‘गोल’ की बात की है।
मेजर ध्यानचंद के संस्मरण की एक घटना– उन्होंने अपने संस्मरण में इस घटना का उल्लेख किया है कि सन् 1933 में वे पंजाब रेजिमेंट की ओर से खेला करते थे। एक दिन ‘पंजाब रेजिमेंट’ और ‘सैंपर्स एंड माइनर्स टीम’ के महज हॉकी के खेल का मुकाबला हुआ। माइनर्स टीम के खिलाड़ी निरंतर ध्यानचंद से गेंद छीनना चाह रहे थे लेकिन हर बार असफल रहे। उनके एक खिलाड़ी को इतना गुस्सा आ गया कि उसने गुस्से में आकर ध्यानचंद के सिर में हॉकी की स्टिक मार दी।
ध्यानचंद चोट खाकर उत्साही बने रहे और पट्टी बँधवाकर फिर से खेल के मैदान में आ पहुँचे। उन्होंने अपने एक अलग ही अंदाज में उस खिलाड़ी से यह कहा कि मैं अपनी इस चोट का बदला अवश्य लूँगा। उसके बाद उन्होंने इतने जोश और उत्साह से गोल लिया कि लगातार छह गोल करके ‘सैंपर्स एंड माइनर्स टीम’ को बुरी तरह मात दी।
CBSE Class 6 Hindi Chapter 2 गोल
हॉकी का जादूगर – नए नाम की उपाधि प्राप्त करना- बर्लिन ओलंपिक में लोग इनके हॉकी खेलने के ढंग से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ कहना शुरू कर दिया। यह उपाधि उन्हें इसलिए भी मिली क्योंकि वे स्वयं आगे बढ़ने के साथ-साथ दूसरों को भी आगे बढ़ा चाहते थे। ‘हॉकी’ खेल में गेंद दूसरों तक पहुँचाते ताकि उनके साथियों को भी जीतने का श्रेय मिले।
ध्यानचंद के जीवन का गुरुमंत्र – उन्होंने अपने जीवन में सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ने का गुरुमंत्र यह बताया कि लगन, साधना और खेल भावना ही मनुष्य को ऊँचाइयों की ओर लेकर जाते हैं।
मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय एवं हॉकी खेल के क्षेत्र में पदार्पण – मेजर ध्यानचंद का जन्म सन् 1904 में प्रयाग के एक साधारण परिवार में हुआ। बाद में इनका परिवार झाँसी जाकर बस गया। 16 वर्ष की आयु में ये ‘फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट’ में साधारण सिपाही के रूप में शामिल हुए। इस रेजिमेंट के सूबेदार मेजर तिवारी थे। इस रेजिमेंट का ‘हॉकी खेल’ में बड़ा नाम था। तिवारी जी उन्हें सदा उन्हें हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करते रहते थे। रेजिमेंट के सभी सिपाही किसी भी समय हॉकी खेलने के लिए तैयार रहते थे। ध्यानचंद ने भी नौसिखिया खिलाड़ी की भाँति खेलना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उनके खेल में निखार आता गया और वे उच्च खिलाड़ियों की श्रेणी में आने लगे और जल्द ही बर्लिन ओलंपिक टीम के कप्तान बन गए। उस समय वे सेना में भी ‘लांस नायक’ के पद पर पहुँच चुके थे।
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हॉकी प्रेमी ध्यानचंद का खेल जगत में विस्मरणीय नाम ध्यानचंद ‘हॉकी’ खेल से बहुत प्रेम करते थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा का नाम ही ‘गोल’ रखा। वे अमर खिलाड़ी हैं। सन् 1979 में ध्यानचंद चिरनिद्रा में चले गए। उनका जन्मदिन ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। भारत का सर्वोच्च खेल पुरस्कार ‘खेल रत्न’ उनके नाम पर दिया जाता है।
2. शब्दार्थ और टिप्पणी
प्रसिद्ध – मशहूर । कोशिश-प्रयास । झटपट – एकदम । थपथपाई – शाबाशी देना । शर्मिंदा – लज्जित।
गुरु-मंत्र – तरीका । लगन – लगाव । साधना – अभ्यास । भावना– इच्छा। दिलचस्पी – रुचि । निश्चित– पक्का । नौसिखिया – नया सीखने वाला। निखार– सुधार होना । तरक्की – उन्नति ।
श्रेय – प्रसिद्धि । कार्य करने में नाम कमाना ।
3. अर्थग्रहण संबंधी एवं बहुवैकल्पिक प्रश्न |
दिए गए गद्यांशों को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
[1] खेल के मैदान में धक्का-मुक्की और नोक-झोंक की घटनाएँ होती रहती हैं। खेल में तो यह सब चलता ही है। जिन दिनों हम खेला करते थे, उन दिनों भी यह सब चलता था।
सन् 1933 की बात है। उन दिनों में, मैं पंजाब रेजिमेंट की ओर से खेला करता था। एक दिन ‘पंजाब रेजिमेंट’ और ‘सैंपर्स एंड माइनर्स टीम’ के बीच मुकाबला हो रहा था। ‘माइनर्स टीम’ के खिलाड़ी मुझसे गेंद छीनने की कोशिश करते, लेकिन उनकी हर कोशिश बेकार जाती। इतने में एक खिलाड़ी ने गुस्से में आकर हॉकी स्टिक मेरे सिर पर दे मारी।
गोल Chapter 2 Hindi NCERT Solutions Class 6
प्रश्न-
(क) यह वक्तव्य कहाँ से लिया गया है? इसमें ‘मैं’ कौन है?
(ख) कौन-सी दो टीमें खेल रही थीं?
(ग) ‘माइनर्स टीम’ के खिलाड़ी ने किसके सिर पर और क्यों स्टिक मारी?
Answer:
(क) यह वक्तव्य ‘गोल’ पाठ से लिया गया है जिसके रचयिता मेजर ध्यानचंद हैं। इसमें ‘मैं’ मेजर ध्यानचंद के लिए प्रयुक्त हुआ है।
(ख) ‘पंजाब रेजिमेंट’ और ‘सैंपर्स एंड माइनर्स टीम’ खेल रही थीं।
(ग) ‘माइनर्स टीम’ के खिलाड़ी ने मेजर ध्यानचंद के सिर पर स्टिक मारी क्योंकि वे जीत की ओर बढ़ रहे थे।
[2] मैं पट्टी बाँधकर फिर मैदान में आ पहुँचा। आ ही मैंने उस खिलाड़ी की पीठ पर हाथ रखकर कहा, “तुम चिंता मत करो, इसका बदला मैं जरूर लूँगा।” मेरे इतना कहते ही वह खिलाड़ी घबरा गया। अब हर समय मुझे ही देखता रहता कि मैं कब उसके सिर पर हॉकी स्टिक मारने वाला हूँ। मैंने एक के बाद एक झटपट छह गोल कर दिए। खेल खत्म होने के बाद मैंने फिर उस खिलाड़ी की पीठ थपथपाई और कहा, “दोस्त, खेल में इतना गुस्सा अच्छा नहीं। मैंने तो अपना बदला ले ही लिया है। अगर तुम मुझे आत्मकथा – अपने बारे में लिखी गई विचारों की हॉकी नहीं मारते तो शायद मैं तुम्हें दो ही गोल से हराता । ” वह खिलाड़ी सचमुच बड़ा शर्मिंदा हुआ। तो देखा आपने मेरा बदला लेने का ढंग ? सच मानो, बुरा काम करने वाला आदमी हर समय इस बात से डरता रहता है कि उसके साथ भी बुराई की जाएगी।
बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तर
Question 1. ध्यानचंद पट्टी बाँधकर क्यों आए?
(क) उनके सिर में दर्द था।
(ख) उन्हें दूसरी टीम के खिलाड़ी ने स्टिक मारी थी।
(ग) वे गिर गए थे।
(घ) यह उनका शौक था।
Answer: (ख). उन्हें दूसरी टीम के खिलाड़ी ने स्टिक मारी थी।
Question 2. दूसरी टीम का खिलाड़ी घबरा क्यों गया था ?
(क) ध्यानचंद ने उसे कहा था कि वे उससे बदला लेंगे।
(ख) वह खेल में हारने वाला था।
(ग) उसे टीम से निकाला जा रहा था।
(घ) ध्यानचंद ने उसकी शिकायत खेल विभाग में कर दी थी।
Answer: (क). ध्यानचंद ने उसे कहा था कि वे उससे बदला लेंगे।
Question 3. ध्यानचंद ने झटपट कितने गोल किए?
(क) दो
(ख) चार
(ग) छह
(घ) नौ
Answer: (ग). छह
Question 4. खिलाड़ी शर्मिंदा क्यों हुआ?
(क) ध्यानचंद ने उसे बड़े प्यार से माफ कर दिया।
(ख) ध्यानचंद ने उसके किए कार्य हेतु उसकी पीठ थपथपाई।
(ग) क्योंकि ध्यानचंद ने उसे बुरी तरह से हराकर अपना बदला लिया था।
(घ) इनमें से कोई नहीं।
Answer: (ग). क्योंकि ध्यानचंद ने उसे बुरी तरह से हराकर अपना बदला लिया था।
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Question 5. बुरा करने वाले के मन में सदा क्या विचार आता है?
(क) उसके साथ भी बुरा होगा।
(ख) जिसके साथ मैंने बुरा किया है उससे क्षमा माँग लेनी चाहिए।
(ग) उसे मन ही मन पछतावा होता है।
(घ) वह सबसे छिपकर रहना चाहता है।
Answer: (क). उसके साथ भी बुरा होगा।
[3] आज मैं जहाँ भी जाता हूँ बच्चे व बूढ़े मुझे घेर लेते हैं और मुझसे मेरी सफलता का राज जानना चाहते हैं। मेरे पास सफलता का कोई गुरु मंत्र तो है नहीं। हर किसी से यही कहता कि लगन, साधना और खेल भावना ही सफलता के सबसे बड़े मंत्र हैं।
प्रश्न-
(क) ध्यानचंद को हर जगह कौन घेर लेते है?
(ख) लोग उनसे क्या जानना चाहते हैं?
(ग) ध्यानचंद की नज़र में बड़े मूलमंत्र क्या हैं?
Answer:
(क) ध्यानचंद को हर जगह बूढ़े और बच्चे घेर लेते हैं।
(ख) वे उनसे उनकी सफलता का राज जानना चाहते हैं।
(ग) ध्यानचंद की नजर में लगन, साधना और खेल भावना ही सफलता के बड़े मूलमंत्र हैं।
[4] मेरा जन्म सन् 1904 में प्रयाग में एक साधारण परिवार में हुआ। बाद में हम झाँसी आकर बस गए। 16 साल की उम्र में मैं ‘फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट’ में एक साधारण सिपाही के रूप में भर्ती हो गया। मेरी रेजिमेंट का हॉकी खेल में काफी नाम था। पर खेल में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी। उस समय हमारी रेजिमेंट के सूबेदार मेजर तिवारी थे। वे बार-बार मुझे हॉकी खेलने के लिए कहते। हमारी छावनी में हॉकी खेलने का कोई निश्चित समय नहीं था । सैनिक जब चाहे मैदान में पहुँच जाते और अभ्यास शुरू कर देते। उस समय तक मैं एक नौसिखिया खिलाड़ी था ।
बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तर
Question 1. मेजर ध्यानचंद का जन्म कब हुआ ?
(क) 1906
(ख) 1904
(ग) 1903
(घ) 1902
Answer: (ख) 1904
Class 6 Hindi Chapter 2 गोल Notes
Question 2. सिपाही के रूप में वे सबसे पहले कहाँ भरती हुए?
(क) फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट
(ख) बर्लिन ओलंपिक
(ग) पंजाब रेजीमेंट
(घ) सैंपर्स एंड माइनर्स टीम
Answer: (क) फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट
Question 3. फर्स्ट ब्राह्मण रेजीमेंट के सूबेदार कौन थे?
(क) मेजर बलवंत
(ख) मेजर ध्यानचंद
(ग) मेजर दानवीर
(घ) मेजर तिवारी
Answer: (घ) मेजर तिवारी
Question 4. सैनिक मैदान में जाकर क्या करते थे?
(क) दौड़ लगाते थे।
(ख) गप्पें हाँकते थे।
(ग) हॉकी का अभ्यास करते थे।
(घ) मैदान की सफाई करते थे।
Answer: (ग) हॉकी का अभ्यास करते थे।
Question 5. ध्यानचंद कैसे खिलाड़ी थे ?
(क) कुशल
(ख) नौसिखिए
(ग) श्रेष्ठ
(घ) इनमें से कोई नहीं
Answer: (ख) नौसिखिए
[5] जैसे-जैसे मेरे खेल में निखार आता गया, वैसे-वैसे मुझे तरक्की भी मिलती गई। सन् 1936 में बर्लिन ओलंपिक में मुझे कप्तान बनाया गया। उस समय मैं सेना में लांस नायक था। बर्लिन ओलंपिक में लोग मेरे हॉकी खेलने के ढंग से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मुझे ‘हॉकी का जादूगर’ कहना शुरू कर दिया। इसका यह मतलब नहीं कि सारे गोल मैं ही करता था। मेरी तो हमेशा यह कोशिश रहती कि मैं गेंद को गोल के पास ले जाकर अपने किसी साथी खिलाड़ी को दे दूँ ताकि उसे गोल करने का श्रेय मिल जाए। अपनी इसी खेल भावना के कारण मैंने दुनिया के खेल प्रेमियों का दिल जीत लिया। बर्लिन ओलंपिक में हमें स्वर्ण पदक मिला। खेलते समय मैं हमेशा इस बात का ध्यान रखता था कि हार या जीत मेरी नहीं, बल्कि पूरे देश की है।
प्रश्न-
(क) ध्यानचंद सर्वप्रथम किस टीम के कप्तान बने और कब ?
(ख) बर्लिन ओलंपिक के बाद ध्यानचंद को कौन-सी उपाधि मिली ?
(ग) खेलते समय ध्यानचंद किस बात का पूरा ध्यान रखते थे?
Answer:
(क) ध्यानचंद सर्वप्रथम सन् 1936 में बर्लिन ओलंपिक के कप्तान बने ।
(ख) बर्लिन ओलंपिक के बाद ध्यानचंद को ‘हॉकी का जादूगर’ की उपाधि मिली।
(ग) खेलते समय ध्यानचंद इस बात का ध्यान रखते थे कि हार या जीत मेरी नहीं बल्कि पूरे देश की होनी चाहिए ।
Chapter 2 गोल NCERT Hindi Class 6
4. पाठ से प्रश्न- अभ्यास
मेरी समझ से
प्रश्न (क) नीचे दिए गए प्रश्नों का सटीक उत्तर कौन-सा है? उसके सामने तारा (*) बनाइए-
- “दोस्त, खेल में इतना गुस्सा अच्छा नहीं । मैंने तो अपना बदला ले ही लिया है। अगर तुम मुझे हॉकी नहीं मारते तो शायद मैं तुम्हें दो ही गोल से हराता । ” मेजर ध्यानचंद की इस बात से उनके बारे में क्या पता चलता है?
- वे अत्यंत क्रोधी थे।
- वे अच्छे ढंग से बदला लेते थे।
- उन्हें हॉकी से मारने पर वे अधिक गोल करते थे।
- वे जानते थे कि खेल को सही भावना से खेलना चाहिए।
- लोगों ने मेजर ध्यानचंद को ‘हॉकी का जादूगर’ कहना क्यों शुरू कर दिया?
- उनके हॉकी खेलने के विशेष कौशल के कारण
- उनकी हॉकी स्टिक की अनोखी विशेषताओं के कारण
- हॉकी के लिए उनके विशेष लगाव के कारण
- उनकी खेल भावना के कारण
Answer:
- वे जानते थे कि खेल को सही भावना से खेलना चाहिए।
- उनके हॉकी खेलने के विशेष कौशल के कारण।
(ख) अब अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए कि आपने ये उत्तर ही क्यों चुने?
Answer:
विद्यार्थी के स्वयं करने के लिए।
पंक्तियों पर चर्चा
पाठ में से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं। इन्हें ध्यान से पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार कक्षा में अपने समूह में साझा कीजिए और अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए।
प्रश्न (क) “बुरा काम करने वाला आदमी हर समय इस बात से डरता रहता है कि उसके साथ भी बुराई की जाएगी।”
Answer:
यदि कोई व्यक्ति किसी को बुरा-भला कहता है, गलत व्यवहार करता है या किसी भी प्रकार की चोट पहुँचाता है तो उसे अपने अंतर्मन से ग्लानि का अहसास होता है। उसे ऐसा लगता है कि उसके साथ भी कभी भी कुछ बुरा घटित हो सकता है या जिसका बुरा उसने किया | जैसे- ध्यानचंद जब ‘पंजाब रेजिमेंट’ की ओर से ‘सैंपर्स एंड माइनर्स’ टीम के साथ खेल रहे थे तो उनसे मुकाबला न कर पाने पर एक खिलाड़ी ने उनके सिर पर स्टिक दे मारी । लेकिन थोड़ी देर के बाद जब मेजर ध्यानचंद सिर पर पट्टी बाँधकर फिर से खेलने आ गए तो वह मन ही मन डरने लगा।
(ख) “मेरी तो हमेशा यह कोशिश रहती कि मैं गेंद को गोल के पास ले जाकर अपने किसी साथी खिलाड़ी को दे दूँ ताकि उसे गोल करने का श्रेय मिल जाए। अपनी इसी खेल भावना के कारण मैंने दुनिया के खेल प्रेमियों का दिल जीत लिया।”
Answer:
इन पंक्तियों में ध्यानचंद के व्यक्तित्व की यह भावना उजागर होती है कि वे अपनी टीम में अपने साथियों का भी पूरा सम्मान करते थे। टीम की जीत का श्रेय केवल स्वयं न लेकर पूरी टीम को दिलाना चाहते थे। इसी कारण गोल के पास ले जाकर गेंद अपने किसी साथी खिलाड़ी को दे देते थे ताकि वह भी गोल कर सके। उनकी इसी खेल भावना के कारण लोग उन्हें पसंद करते थे। ध्यानचंद ने अपने शब्दों में भी कहा है कि खेलते समय में इस बात का ध्यान रखता हूँ कि हार या जीत मेरी नहीं, बल्कि पूरे देश की है।
सोच-विचार के लिए
संस्मरण को एक बार फिर से पढ़िए और निम्नलिखित के बारे में पता लगाकर अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए-
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प्रश्न (क) ध्यानचंद की सफलता का क्या रहस्य था?
Answer:
ध्यानचंद की सफलता का रहस्य था उनकी खेल के प्रति सच्ची लगन, साधना और खेल भावना। उन्होंने जब हॉकी खेलना शुरू किया तो वे बिल्कुल नौसिखिए थे। धीरे-धीरे अभ्यास से उनके खेल में निखार आता गया और उनको तरक्की भी मिलती गई। हॉकी सीखने के लिए कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वे निरंतर प्रयासरत रहे। 1936 में वे बर्लिन ओलंपिक टीम के कप्तान बने और अपने हॉकी खेलने के ढंग से लोगों को इतना प्रभावित है, वह भी किसी-न-किसी रूप में उससे बदला अवश्य किया कि ‘हॉकी के जादूगर’ कहलाए। लेगा।
(ख) किन बातों से ऐसा लगता है कि ध्यानचंद स्वयं से पहले दूसरों को रखते थे?
Answer:
यह कथन सत्य है कि ध्यानचंद स्वयं से पहले दूसरों को रखते थे। वे गेंद को अपने साथियों के पास ले जाते थे ताकि वे गोल कर सकें। जीत का श्रेय केवल स्वयं न लेकर टीम को देना चाहते थे। दूसरी ओर इस बात का भी सदा ध्यान रखते थे कि हार या जीत उनकी नहीं पूरे देश की हो। जो यह दर्शाता है कि वे सच्चे देशप्रेमी थे।
संस्मरण की रचना
“उन दिनों में मैं, पंजाब रेजिमेंट की ओर से खेला करता था। ”
इस वाक्य को पढ़कर ऐसा लगता है मानो लेखक आपसे यानी पाठक से अपनी यादों को साझा कर रहा है। ध्यान देंगे तो इस पाठ में ऐसी और भी अनेक विशेष बातें आपको दिखाई देंगी। इस पाठ को एक बार फिर से पढ़िए ।
(क) अपने-अपने समूह में मिलकर इस संस्मरण की विशषेताओं की सूची बनाइए ।
Answer: विद्यार्थी के स्वयं करने योग्य।
(ख) अपने समूह की सूची को कक्षा में सबके साथ साझा कीजिए ।
Answer: विद्यार्थी के स्वयं करने योग्य।
शब्दों के जोड़े, विभिन्न प्रकार के
प्रश्न- (क) “जैसे-जैसे मेरे खेल में निखार आता गया, वैसे-वैसे मुझे तरक्की भी मिलती गई । ”
इस वाक्य में ‘जैसे-जैसे’ और ‘वैसे-वैसे’ शब्दों के जोड़े हैं जिनमें एक ही शब्द दो बार उपयोग में लाया गया है। ऐसे जोड़ों को ‘शब्द-युग्म’ कहते हैं। शब्द-युग्म में दो शब्दों के बीच में छोटी-सी रेखा लगाई जाती है जिसे योजक चिह्न कहते हैं। योजक यानी जोड़ने वाला । आप भी ऐसे पाँच शब्द-युग्म लिखिए।
Answer:
(क) रख-रखाव
(ख) साज-सज्जा
(ग) खान-पान
(घ) चाल-चलन
(ङ) टेढ़ी-मेढ़ी
(ख) “खेल के मैदान में धक्का-मुक्की और नोंक-झोंक की घटनाएं होती रहती हैं।”
इस वाक्य में भी आपको दो शब्द-युग्म दिखाई दे रहे हैं, लेकिन इन शब्द-युग्मों के दोनों शब्द भिन्न-भिन्न हैं, एक जैसे नहीं हैं। आप भी ऐसे पाँच शब्द-युग्म लिखिए जिनमें दोनों शब्द भिन्न-भिन्न हों।
Answer:
(क) ज्यों-ज्यों नदी का जल बढ़ता गया,
(ख) जब-जब देश पर विपदा आती है, तब-तब सरकार सहायता अवश्य करती है।
(ग) बूँद-बूँद टपकनें से भी सारा कमरा पानी-पानी हो गया।
(घ) राम-राम, रटते रटते वह ईश्वर का भक्त बन गया।
(ङ) धीरे-धीरे साफ़-सफ़ाई करके, माँ ने घर का कोना-कोना चमका डाला।
(ग) “हार या जीत मेरी नहीं, बल्कि पूरे देश की है।”
“आज मैं जहाँ भी जाता हूँ बच्चे व बूढ़े मुझे घेर लेते हैं। ”
इन वाक्यों में जिन शब्दों के नीचे रेखा खिंची है, उन्हें ध्यान से पढ़िए। हम इन शब्दों को योजक की सहायता से भी लिख सकते हैं, जैसे- हार-जीत, बच्चे-बूढ़े आदि। आप नीचे दिए गए शब्दों को योजक की सहायता से लिखिए-
- अच्छा या बुरा – अच्छा-बुरा
- छोटा या बड़ा – छोटा- – बड़ा
- अमीर और गरीब – अमीर-गरीब
- उत्तर और दक्षिण – उत्तर-दक्षिण
- गुरु और शिष्य – गुरु-शिष्य
- अमृत या विष – अमृत-विष
बात पर बल देना
“मैंने तो अपना बदला ले ही लिया है।”
“मैंने तो अपना बदला ले लिया है। ”
इन दोनों वाक्यों में क्या अंतर है? ध्यान दीजिए और बताइए । सही पहचाना ! दूसरे वाक्य में एक शब्द कम है। उस एक शब्द के न होने से वाक्य के अर्थ में भी थोड़ा अंतर आ गया है।
हम अपनी बात पर बल देने के लिए कुछ विशेष शब्दों का प्रयोग करते हैं जैसे- ‘ही’, ‘भी’, ‘तो’ आदि। पाठ में से इन शब्दों वाले वाक्यों को चुनकर लिखिए। ध्यान दीजिए त्यों-त्यों लोग गाँव छोड़कर जाते रहे। कि यदि उन वाक्यों में ये शब्द न होते तो उनके अर्थ पर इसका क्या प्रभाव पड़ता ।
Answer:
बात पर बल देने वाले शब्द ‘निपात’ कहलाते हैं।
(क) मेरे इतना कहते ही खिलाड़ी घबरा गया।
(ख) अब हर समय मुझे ही देखते रहना ।
(ग) अगर तुम मुझे हॉकी नहीं मारते तो शायद मैं तुम्हें दो ही गोल से हराता ।
(घ) तो देखा आपने मेरा बदला लेने का ढंग ।
(ङ) उसके साथ भी बुराई की जाएगी।
(च) मैं जहाँ भी जाता हूँ बच्चे व बूढ़े मुझे घेर लेते हैं।
(छ) लगन, साधना और खेल भावना ही सफलता का सबसे बड़ा मूलमंत्र है।
यदि वाक्यों में ‘ही’ ‘भी’ ‘तो’ आदि शब्दों का प्रयोग न किया जाए तो ये सामान्य वाक्य का रूप ले लेते हैं और ये शब्द वाक्य को प्रभावी बनाते हैं।
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5. पाठ से आगे प्रश्न – अभ्यास
आपकी बात
(क) ध्यानचंद के स्थान पर आप होते तो क्या आप बदला लेते? यदि हाँ, तो बताइए कि आप बदला किस प्रकार लेते?
Answer:
यदि मैं ध्यानचंद के स्थान पर होता तो मुझे अपने प्रतिद्वंदी पर क्रोध तो आता और पलटकर बदला लेने की इच्छा भी होती। एक खिलाड़ी होने के नाते स्वयं पर संयम रखता क्योंकि हार-जीत होना खेल का नियम होता है।
मारपीट या ईर्ष्या करने वाला खिलाड़ी कभी सच्चा खिलाड़ी नहीं हो सकता, यह सोचकर चुप रहता ।
(ख) आपको कौन-से खेल और कौन-से खिलाड़ी सबसे अधिक अच्छे लगते हैं? क्यों?
Answer:
विद्यार्थी अपने मनपसंद खेल और खिलाड़ियों के नाम लिखें।
समाचार पत्र से
नोट– मनोरंजन एवं बौद्धिक भाग विद्यार्थियों के स्वयं करने योग्य।
6. अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. ‘गोल’ पाठ रचना की कौन-सी विधा है?
Answer: ‘गोल’ पाठ रचना की विधा संस्मरण है।
प्रश्न 2. सन् 1933 में ध्यानचंद किस रेजीमेंट की ओर से खेलते थे?
Answer: सन् 1933 में ध्यानचंद ‘पंजाब रेजीमेंट’ की ओर से खेलते थे।
प्रश्न 3. ध्यानचंद को किस टीम के खिलाड़ी ने हॉकी स्टिक मारी थी?
Answer: ध्यानचंद को ‘सैंपर्स एंड माइनर्स’ टीम के खिलाड़ी ने हॉकी स्टिक मारी थी।
प्रश्न 4. ध्यानचंद ने उससे अपना बदला कैसे लिया?
Answer: ध्यानचंद ने उससे अपना बदला लगातार छह गोल बना कर लिया।
प्रश्न 5. ध्यानचंद जी सफलता का मूलमंत्र क्या था ?
Answer: ध्यानचंद की सफलता का मूलमंत्र लगन, साधना और खेल भावना था।
प्रश्न 6. ‘नौसिखिया’ शब्द से आप क्या समझते हैं?
Answer: ‘नौसिखिया’ शब्द का अर्थ नया सीखने वाला है।
प्रश्न 7. बर्लिन ओलंपिक में जब ध्यानचंद कप्तान बने तो वे सेना के किस पद पर थे?
Answer: बर्लिन ओलंपिक में जब ध्यानचंद कप्तान बने तो वे ‘लांस नायक’ के पद पर थे।
प्रश्न 8. ‘बर्लिन ओलंपिक’ में ध्यानचंद की टीम को कौन-सा पदक प्राप्त हुआ?
Answer: ‘बर्लिन ओलंपिक’ में ध्यानचंद की टीम को ‘स्वर्ण पदक’ प्राप्त हुआ।
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प्रश्न 9. ध्यानचंद का जन्मदिन किस रूप में मनाया जाता है?
Answer: ध्यानचंद का जन्मदिन ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
प्रश्न 10. भारत का सर्वोच्च ‘खेल रत्न’ पुरस्कार किसके नाम पर दिया जाता है?
Answer: भारत का सर्वोच्च ‘खेल रत्न’ पुरस्कार ध्यानचंद के नाम पर दिया जाता है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. ‘माइनर्स टीम’ के खिलाड़ी ने ध्यानचंद के सिर पर स्टिक क्यों मारी ?
Answer: ध्यानचंद ‘पंजाब रेजीमेंट’ की ओर से खेल रहे थे। ‘माइनर्स टीम’ के खिलाड़ी उनसे गेंद छीनने का प्रयास करने में विफल हो रहे थे। इतने में एक खिलाड़ी को गुस्सा आ गया उसने हॉकी स्टिक ही ध्यानचंद के सिर पर मार दी।
प्रश्न 2. ध्यानचंद ने अपनी चोट का बदला लेने के लिए क्या किया?
Answer: ध्यानचंद पट्टी बाँधकर फिर से मैदान में आ गए। उन्होंने लगातार छह गोल करके अपनी प्रतिद्वंदी टीम को बुरी तरह हराकर बदला लिया।
प्रश्न 3. ध्यानचंद की सफलता का राज क्या था?
Answer: ध्यानचंद का अपनी सफलता हेतु कोई गुरुमंत्र न था। वे यह मानते थे कि यदि हम खेल को लगन, साधना और खेल भावना से खेलें तो अवश्य सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न 4. ध्यानचंद ने कब और कैसे ‘हॉकी’ खेलना शुरू किया?
Answer: अपनी 16 वर्ष की आयु में ध्यानचंद ‘फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट’ में सिपाही के रूप में भर्ती हुए। टीम के सूबेदार मेजर तिवारी थे, उन्होंने ध्यानचंद को क्रिकेट खेलने के लिए प्रेरित किया। पहले तो वे नौसिखिए की भाँति खेलते थे लेकिन धीरे-धीरे उनके खेल में निखार आता गया ।